
संभाजी महारज का जन्म 1697 में हुआ थे। यह छत्रपति शिवाजी महाराज के जयेष्ट पुत्र छत्रपति संभाजी महाराज थे।
इनकी माता का देहांत इनके 2 वर्ष के होते ही हो गया था। इसलिए इनका पालन - पोषण इनकी दादी माँ जीजाबाई ने कर था।
छत्रपति संभाजी महाराज के बारे मे कहा से सुरु करू ओर कहा तक लेके जाऊ समझ ही नही आ रहा है। छत्रपति संभाजी महाराज एक अदभुत मनुष्य थे। इन्होंने सिर्फ 13 वर्ष की उम्र में ही 13 भाषाओ को सिख लिया था। 13 साल की उम्र में संस्कृत भाषा, पुर्तगालियो भाषा, अंग्रेज़ो की भाषा, मुगलो की भाषा, डेकन भाषा ऐसी बहुत सारी भाषाओ का ज्ञान था। कई शास्त्र लिख डाले ध्यान दीजिए शास्त्र पड़े नही लिख डाले छत्रपति संभाजी महाराज घुड़सवारी, सस्त्र आदि में भी बहुत तेज थे, छत्रपति संभाजी महाराज सस्त्र और शास्त्र दोनो में बहुत निपुण थे। 16 साल की उम्र में 60 किलो की तलवार लेकर पहला युद्ध रामनगर का जीता। इनके पिता छत्रपति शिवाजी महाराज उस समय मुगलो से लोहा लेने में वियस्थ थे।
इन्होंने 19 साल उम्र में रायगढ़ का किला सम्हाला 23 साल की उम्र में सन 1681 में वीर मराठा शिवाजी महाराज का देहांत हो गया। इन्होंने 1 मिनट भी समय नही गवाया तुरंत तैयारी करी। औरंगाबाद में औरंगजेब के सबसे बड़ा किला जीत लिया। औरंगजेब हैरान रह गया उसने सोचा नही था। कि 23 साल का बच्चा ऐसे कैसे कर सकता है। औरंगजेब ने अपने हुसैन अली खान नाम का सबसे बड़ा सेनापति 20 हज़ार हाथियों ओर सेनिको के साथ भेजा कि जाओ इसको खत्म करके आओ। हुसैन अली खान ने कई बार कोशिश करी लेकिन वे हर बार हार कर वापिस लौटा।
आपको जानकर हैरानी होगी कि छत्रपति संभाजी महाराज ने 9 साल तक 120 युद्ध लड़े ओर एक भी युद्ध नही हारे सभाजी महारज ने औरंगजेब को 9 साल तक युद्ध लड़े औरंगजेब की 8 लाख की सेना इनकी 20 हज़ार की सेना तब भी संभाजी महारज कभी हारे नही। उस समय एक राजा था, चिक्का देवराय वो औरंगजेब से पूरी तरह से मिल गया था। छत्रपति सभाजी महारज ने पहले ही कह दिया था। कि एक ने भी अगर औरंगजेब की धर्म परिवतर्न में साथ दिया उसकी सारी नस्ल खत्म कर दूंगा। इन्होंने चिक्का देवराय को भी खत्म कर दिया। औरंगजेब समझ गए थे। कि इसको सामने से तो नही मार सकते है, तो तब छत्रपति संभाजी महारज ने अपनी पत्नी के भाई को वेतनदारी देने से माना कर दिया, और इसकी खबर औरंज़ेब को लग गयी। उन्हीने गणोजीसीरखे को अपनी तरफ सामिल कर लिया।
एक बार संभाजी और कवि कलश अकेले गुप्त रास्ते से जा रहे थे। गणोजीसीरखे ने इसकी खबर औरंगजेब को दी, और औरंगजेब ने अपने एक सेनापति को 2 हज़ार सैनिक लेकर भेजा। ओर उन्होंने पीछे से वॉर करके सम्भाजी महाराज और कवि कलश को बंधी बनाकर ले आये, औरंगजेब छत्रपति सभाजी महाराज से बहुत खुनस खाए बैठा था। उसने उन्हें पूरे गांव मे गुमाया। उनसे कहा कि इनको पत्थर से मारो इनपर मूत्र तियागो उसके बाद उन्हें कारगर में ले आया। औरंगजेब ने छत्रपति संभाजी महाराज के सामने 3 शर्ते रखी ।
यह तीन बातें मान लो, और मेरे साथ काम करो। छत्रपति संभाजी महारज ने कहा, मराठाओ की जमीन तुम्हारें नाम नही करूँगा, और न ही एक पैसा तुमको दूंगा, और न ही अपना धर्म परिवतर्न करूँगा । हज़ार बार मारो अगली बार फिर जन्म लूंगा, अपने धर्म मे इन्होंने अपना अन्न - जल त्याग दिया। वो इनके नाखून उखड़ते चले गए, आखों में मिर्च डालते चले गए, उसके बाद गर्म लोहे की रॉड उनके आखो में डालते वक़्त औरंगजेब ने फिर पूछा संभाजी ने फिर माना कर दिया, लोहे की गरम रॉड उनकी आँखों मे डाल दी उंगलिया कटनी सुरु करी, पहले पाव की कटी हाथ काट दिए बालो को उखाड़ दिया, खाल उतारना सुरु कर दिया, हर बार औरंगजेब सम्भाजी महाराज से तीन प्रश्न पूछता और सम्भाजी महाराज माना कर देते।
यह दर्दनाक सिलसिला 40 दिन तक चला उसके बाद औरंगजेब हार मान गया और बोला सम्भाजी तू जीता और मैं हारा, मेरे 4 बेटे है अगर एक भी तेरे जैसा होता पूरे देश को मुगल सल्तनत बना देता, तेरे आगे में हर मान गया, औरंगजेब अपने सेनापति से बोला काट डालो इसका शरीर, उनके छोटे - छोटे टुकड़े करवाकर नदी में फेखवा दिया। मराठाओ ने सम्भाजी महाराज के टुकड़ों को जोड़ कर उनका दाह संस्कार किया, लेकिन अब हर घर महल बन गया, हर औरत सेना में आ गयी, हर पत्ता तीर बन गया।
देश धर्म पर मिटने वाला,
शेर शिवा का छावा था।
महा पराक्रमी, परम प्रतापी
एक ही संभु राजा था।
और उसके बाद मराठाओ ने दुबारा युद्ध छेड़ा। औरंगजेब उसी युध्द में मारा गया, डेकन का सुल्तान बनने का उसका सपना अधूरा रह गया ।
अनुरोध - गर्व है मुझे की मैं ऐसे देश मे पैदा हुआ, जहा वीर मराठा सम्भाजी महाराज जैसे महान राजा हुए, लेकिन मुझे दुख भी होता है कि लोग आज कल।इस वीर मराठा को भूलते जा रहे है, आपसे अनुरोध इस आर्टिकल को ज्यादा से ज्यादा शेयर करे धन्यवाद