
जाहरवीर की माता का नाम बाछल था। और पिता का नाम राजा जेवर था। जो ददरेवा में राज्य किया करते थे, पर राजा जेवर पर कोई संतान न होने के कारण उन्हें प्रजा के लोग मनहूस कहते थे। राजा जेवर सिंह इस बात से बहुत परेशान और दुखी रहते थे, तथा वह जहां भी जाते थे, वहां के लोग उन्हें ताना देते थे।
एक बार राजा जेवर ने अपने बाग में 900000 पेड़ लगवाए, जिससे उस बाग का नाम नौलखा बाग पड़ गया था। उसकी रखवाली के लिए उन्होंने माली और मालन को भी रखा, कुछ समय के बाद जब बाग के पेड़ों पर फल लगे, तो माली ने सोचा क्यों ना में फल राजा जेवर को ले जा कर दूं, तब वह फल लेकर राजा के पास जाता है, तथा राजा के दरबार में फल ले जाकर रख दिए, और राजा से बोला हे राजन ! आपके बाग से पके हुए फल लाया हूं, इस पर राजा बहुत ही प्रसन्न हुए और आज हम अपने बाकी शेयर करना चाहते हैं, जब राजा जेवर अपने बाग की तरफ जाते हैं, तो बाग की जमीन में कदम रखते ही सारा बाग सूख जाता है, इस पर राजा बहुत ही दुखी हुए ।
नौलखा बाग का पुनः हरा होना
जब गुरु गोरखनाथ अपनी समाधि से उठकर ददरेवा नगरी की तरफ प्रस्थान करते हैं। तो रास्ते में उन्हें नौलखा बाग पड़ता है, तथा वहां पर वह अपनी समाधि जमा लेते हैं, इस पर उनके सभी शिष्य हंस कर बोलते हैं, कि हे गुरु गोरखनाथ इस सूखे हुए जंगलों में कंद मूल फल कहीं नहीं मिलेंगे। इस पर गुरु गोरखनाथ ने हंसकर जवाब दिया। लो यह मेरे कमंडल से थोड़ी धूनी ले जाओ, इसको जो पेड़ सुखा हुआ है सब पर मार देना, शिष्यों ने ऐसा ही किया और जो बची हुई धूनी थी, उसको सूखे पेड़ पर डाल दिया, इतना करते ही जो वृक्ष जो कुएं 12 साल से सूखे हुए पड़े थे, उनमें पुनः पानी आ जाता है, तथा पेड़ भी हरे हो जाते हैं ।
जब माता बाछल को गुरु गोरखनाथ के बारे में पता चलता है, कि वह उनके नौलखा बाग में आए हुए हैं, जब माता बाछल को पता चला कि नौलखा बाग भी हरा-भरा हो गया है, तो वह सुंदर-सुंदर भोजन बनाकर गुरु गोरखनाथ के पास जाने की तैयारी करती है, और प्रातः उठकर गुरु गोरखनाथ के पास पहुंच जाती है, और गुरु गोरखनाथ से कहती हैं, गुरु गोरखनाथ महाराज मैंने आपकी 12 वर्ष तपस्या की है। कृपया मुझे पुत्र प्राप्ति की वरदान दे। मेरे भाग्य में सात जन्म तक कोई भी संतान की उत्पत्ति होना नहीं लिखा है। कृपया मुझे पुत्र प्राप्ति की वरदान दे तो इस पर खुश होकर गुरु गोरखनाथ जी ने माता बाछल को एक बहुत ही चमत्कारी पुत्र प्राप्त होने का वरदान दिया ।
जाहरवीर गोगा जी का जन्म चढ़ते भाद्रपद को राजस्थान के ददरेवा नामक गांव में हुआ था। जो सादुलपुर के निकट पड़ता है। इनकी माता का नाम बाछल तथा पिता का नाम जेवर सिंह था जो बहुत ही व्यापक राजा थे। बाबा जाहरवीर का जन्म होते ही प्रकृति मानो ऐसी प्रतीत हो रही थी, कि जैसे बाबा जाहरवीर के जन्म की तैयारियों में खुद को सजाए बैठी थी।
जाहरवीर का गोगा जी नाम इस तरह पड़ा, कि जब वह गुरु गोरखनाथ के पास पुत्र प्राप्ति का वरदान लेने गई थी, तब उनके भाग्य में पृथ्वी पर सातों जन्म तक कोई भी संतान उत्पत्ति होना नहीं लिखा था, तब गुरु गोरखनाथ जी ने समुद्र में पाताल लोक जाकर नाग नागिन से गूगल मांगा, जो पदम नगर तारी नाग और नागिन के पास था, जब गुरु गोरखनाथ ने वह गूगल मांगा, तो उन्होंने गूगल देने को साफ मना कर दिया, इस पर गोरखनाथ जी ने उन्हें बीन के नशे में नशा कर गूगल को चुरा कर ले आए थे। और वह गूगल माता बाछल को दे दिया था। तब से जाहरवीर का नाम गोगाजी पड़ा ।
गोगाजी का विवाह कुंतल देश की महारानी रानी सीरियल से हुआ था। रानी सीरियल को गोगाजी सुपर में देखा था। और स्वप्न में ही रानी सीरियल के साथ 3 फेरे ले लिए थे। और तब से ही गोगा जी महाराज अर्ध विवाह के और जब यह बात का पता चला, तो रानी बाछल ने कहा यह सब शोभा नहीं देता क्षत्रिय कष्ट के लिए तो इस पर माता बाछल ने गोगा जी को बहुत ही धमकाया।
गोगा जी एक बार अपने महल में आराम कर रहे थे। तथा रानी सीरियल ददरेवा सरोवर में स्नान के लिए गई थी, और रास्ते में उनके मौसेरे भाई अर्जुन सर्जन ने रानी सीरियल के साथ दुष्ट विवाह करना चाहते थे, जब ये बात पर जाहरवीर को पता चला तो उन्होंने अपने अर्जुन सर्जन को मृत्युदंड दे दिया और यह बात जब जाहरवीर की माता बाछल को पता चला, उन्होंने जाहरवीर को श्राप दे दिया और कहा जा मुझे कभी भी अपना मुंह मत दिखाना, माता बाछल के श्राप को शिरोधार्य करके पाताल लोक अपने गुरु गोरखनाथ जी के पास जाकर समा गए थे। तथा तभी से उस स्थान को गोगामेड़ी माना जाता है।
गोगामेड़ी पर मेला लगते भाद्रपद नवमी को गोगा जी के जन्म के दिन मेला लगता है। जो राजस्थान के जिला सालासर में बांद्रा के निकट पड़ती है। उसी को गोगामेड़ी कहते हैं।
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